संक्षिप्त नाम विस्तार और प्रारम्भ | |||
1-(1) यह अधिनियम उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग अधिनियम 2004 कहा जायेगा | |||
(2) इसका विस्तार संपूर्ण उत्तर प्रदेश में होगा । | |||
(3) यह ऐसे दिनांक को प्रवृत्त होगा जिसे राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा इस निमित्त नियत करे। | |||
परिभाषाएं | 2- इस अधिनियम में - | ||
(क) ''आयोग'' का तात्पर्य धारा 3 के अधीन गठित उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग से है; | |||
(ख) ''सदस्य'' का तात्पर्य आयोग के सदस्य से है; | |||
(ग) ''नागरिकों के अन्य पिछड़े वर्गो'' का तात्पर्य नागरिकों के ऐसे वर्गो से है जो उत्तर प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े | |||
वर्गो के लिये आरक्षण) अधिनियम, 1994 की धारा 2 के खण्ड (ख) में परिभाषित है; | |||
(घ) ''महिला'' में बालिका या किशोरी सम्मिलित हैं। | |||
अध्याय - दो | |||
राज्य महिला आयोग | |||
आयोग का गठन | |||
3- (1) राज्य सरकार, इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग और समनुदेशित कृत्यों का पालन करने के लिए, | |||
अधिसूचना द्वारा एक निकाय का गठन करेगी जिसे उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग कहा जाएगा। | |||
(2) आयोग में निम्नलिखित होंगे- | |||
(क) | राज्य सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट एक अध्यक्ष, जो महिलाओं के हित के लिये समर्पित ऐसी कोई महिला होगी, जिसके पास भारत में | ||
विधि द्वारा स्थापित किसी विश्वविद्यालय की कोई उपाधि या उसके समकक्ष मान्यता प्राप्त कोई अर्हता हो; | |||
(ख) | राज्य सरकार द्वारा ऐसी महिलाओं मे से नाम निर्दिष्ट सात सदस्य जिनके पास भारत मे विधि द्वारा स्थापित किसी विश्वविद्यालय की | ||
कोई उपाधि या उसके समकक्ष मान्यता प्राप्त कोई अहर्ता हो,और जिन्होंने महिलाओं के उत्थान और कल्याण के लिए कार्य किया हो: | |||
परन्तु निम्नलिखित मे से प्रत्येक का कम से कम एक सदस्य होगा :- | |||
(एक) | अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों ; | ||
(दो) | नागरिको के अन्य पिछड़े वर्गो ; | ||
(तीन) | अल्पसंख्यकों ; | ||
(चार) | अधिवक्ताओं (न्यूनतम 10 वर्ष का अनुभव सहित ) ; | ||
(ग) | राज्य सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट एक सदस्य सचिव जो राज्य सरकार के विशेष सचिव से अनिम्न पंक्ति की महिला अधिकारी और | ||
राज्य की किसी सिविल सेवा या अखिल भारतीय सेवा की सदस्य हो या राज्य के अधीन कोई सिविल पद समुचित अनुभव के साथ धारण करती हो। | |||
पदावधि और सेवा की शर्ते | |||
4- | (1) | अध्यक्ष या प्रत्येक सदस्य पद ग्रहण करने के दिनांक से दो वर्ष की अवधि तक अथवा राज्य सरकार के प्रसाद पर्यान्त पद | |
धारण करेंगे। | |||
(2) | अध्यक्ष 35 वर्ष की आयु से कम होने पर और 60 वर्ष की आयु के पश्चात पद धारण नही करेगा,और कोई अन्य सदस्य 25 वर्ष की | ||
आयु प्राप्त करने के पूर्व और 60 वर्ष की आयु पूरी करने के पश्चात पद धारण नही करेगा। | |||
(3) | अध्यक्ष एवं सदस्य को क्रमश राज्य के राज्यमंत्री एवं उपमंत्री का दर्जा दिया जायेगा। | ||
(4) | अध्यक्ष या सदस्य-सचिव से भिन्न कोई सदस्य राज्य सरकार को सम्बोधित स्वहस्ताक्षरित लेख द्वारा किसी समय,यथास्थिति, अध्यक्ष | ||
या सदस्य का पद त्याग सकेगा। | |||
5- | राज्य सरकार किसी व्यक्ति को अध्यक्ष या किसी सदस्य के पद से हटा देगी,यदि वह व्यक्ति - | ||
(क) | अनुन्मोचित दिवालिया हो जाता है ; | ||
(ख) | ऐसे किसी अपराध के लिये सिद्ध दोष ठहराया और कारावास से दण्डित किया जाता है जिससे राज्य सरकार की राय मे नैतिक | ||
अधमता अंतर्ग्रस्त है ; | |||
(ग) | विकृत चित का हो जाता है और किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित कर दिया जाता है ; | ||
(घ) | कार्य करने से इंकार करता है या कार्य करने में अक्षम हो जाता है ; | ||
(ड) | आयोग से अनुपस्थित रहने की इजाजत लिए बिना ,आयोग की तीन लगातार बैठको से अनुपस्थित रहता है ;या | ||
(च) | राज्य सरकार की राय में ,अध्यक्ष या सदस्य के पद का इस प्रकार दुरुपयोग किया है कि ऐसे व्यक्ति का पद पर रहना लोक हित के | ||
लिए हानिकर हो गया है , या ऐसे अध्यक्ष या सदस्य के रूप मे बने रहना ,अन्यथा अनुपयुक्त या असंगत है , | |||
परन्तु किसी भी व्यक्ति को इस खण्ड़ के अधीन हटाना नहीं जायेगा जब तक कि उसे इस मामले में सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो। | |||
6- | उपधारा (2) के अधीन या अन्यथा हुयी किसी रिक्ति को नये नाम - निर्देशन द्वारा भरा जाएगा। | ||
7- | अध्यक्ष एवं सदस्यों के देय वेतन, भत्ते और उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्ते ऐसी होंगी जैसी विहित की जाए। | ||
आयोग के अधिकारी और अन्य कर्मचारी | |||
5- | (1) | राज्य सरकार आयोग के लिए ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों की व्यवस्था करेगी, जो इस अधिनियम के अधीन आयोग के कृत्यों | |
का दक्षता-पूर्वक पालन करने के लिए आवश्यक हों। | |||
(2) | आयोग के प्रयोजनार्थ नियुक्त सदस्य-सचिव, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को देय वेतन और भत्ते और उनकी सेवा के अन्य | ||
निबंधन और शर्ते ऐसी होंगी जैसी विहित की जाएं। | |||
वेतन और भत्तो का अनुदान से दिया जाना | |||
6- | अध्यक्ष एवं सदस्यों को देय वेतन और भत्ते और प्रशासनिक व्यय, जिसमें धारा 5 में निर्दिष्ट सदस्य सचिव, अधिकारियों और अन्य | ||
कर्मचारियों को देय वेतन, भत्ते और पेंशन सम्मिलित हैं का भुगतान, धारा 11 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट अनुदानों से किया जाएगा। | |||
रिक्तियां आदि आयोग की कार्यवाहियों को अविधिमान्य नहीं करेंगी | |||
7- | आयोग का कोई कार्य या कार्यवाही केवल किसी रिक्ति के विद्यमान होने या आयोग के गठन में त्रुटि के आधार पर विवादग्रस्त या | ||
अविधिमान्य नहीं होगी। | |||
आयोग द्वारा विनियमित की जाने वाली प्रक्रिया | |||
8- | (1) | आयोग जब भी आवश्यक हो, ऐसे समय और स्थान पर जैसा अध्यक्ष उचित समझे, बैठक करेगा। | |
(2) | आयोग अपनी प्रक्रिया स्वयं विनियमित करेगा। | ||
(3) | आयोग के समस्त आदेश और विनिश्चय सदस्य-सचिव द्वारा या इस निमित्त सदस्य-सचिव द्वारा सम्यक् रूप से प्राधिकृत आयोग | ||
के किसी अन्य अधिकारी द्वारा अधिप्रमाणित किये जाएंगे। | |||
अध्याय - तीन | |||
आयोग के कृत्य | |||
आयोग के कृत्य | |||
9- | (1) | आयोग समस्त या किसी निम्नलिखित कृत्य का पालन करेगा अर्थात:- | |
(क) | संविधान और अन्य विधियों के अधीन महिलाओं के लिए उपबंधित रक्षोपायों से सम्बंधित सभी मामलों का अन्वेषण और परीक्षण करना ; | ||
(ख) | राज्य सरकार को उन रक्षोपायों की कार्यप्रणाली पर वार्षिक और ऐसे अन्य समयों पर जैसा आयोग उचित समझे, रिपोर्ट प्रस्तुत करना ; | ||
(ग) | महिलाओं की दशा सुधारने के लिए उन रक्षोपायों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए ऐसी रिपोर्ट में राज्य सरकार को सिफारिश करना ; | ||
(घ) | महिलाओं को प्रभावित करने वाले संविधान और अन्य विधियों के विद्यमान उपबंधों का समय-समय पर पुनर्विलोकन करना और उनके संशोधनों की | ||
सिफारिश करना जिससे कि ऐसे विधानों में किसी कमी, अपर्याप्तता या त्रुटियों को दूर करने के लिए उपचारी विधायी उपायों का सुझाव दिया जा सके ; | |||
(ड.) | महिलाओं से सम्बंधित संविधान और अन्य विधियों के उपबंधों के अतिक्रमण के मामलों को समुचित प्राधिकारियों के समक्ष उठाना। | ||
(च) | निम्नलिखित मामलों से सम्बंधित विशिष्ट शिकायतों पर विचार करना और स्वप्रेरणा से उनका संज्ञान लेना :- | ||
(एक) | महिलाओं के अधिकारों का वंचन ; | ||
(दो) | महिलाओं को संरक्षण प्रदान करने के लिए और समता तथा विकास या उद्देश्य प्राप्त करने के लिए अधिनियमित विधियों का अक्रियान्वयन ; | ||
(तीन) | महिलाओं की कठिनाईयों को कम करने और उनका कल्याण सुनिश्चित करने तथा उनको अनुतोष उपलब्ध कराने के प्रयोजनार्थ, नीतिगत विनिश्चयों, | ||
दिशा निर्देशों या अनुदेशों का अनुपालन और ऐसे मामलों से उद्भूत विवाद्यकों को समुचित प्राधिकारियों के समक्ष उठाना ; | |||
(छ) | महिलाओं के विरूद्ध विभेद और अत्याचारों से उदभूत विशिष्ट समस्याओं या, स्थितियों का विशेष अध्ययन या अन्वेषण कराना और बाधाओं का पता | ||
लगाना जिससे कि उनको दूर करने के लिए कार्य योजनाओं की सिफारिश की जा सके ; | |||
(ज) | संवर्धन और शिक्षा सम्बंधी अनुसंधान करना जिससे कि महिलाओं का सभी क्षेत्रों में सम्यक् प्रतिनिधत्व सुनिश्चित करने के उपायों का सुझाव दिया जा सके | ||
और उनकी उन्नति में अड़चन डालने के लिए उत्तरदायी कारणों का पता लगाया जा सके जैसे आवास और मूलभूत सेवाओं की प्राप्ति में कमी, | |||
उबाऊपन और उपजीविकाजन्य स्वास्थ्य परिसंकटों को कम करने और महिलाओं की उत्पादकता की वृद्धि के लिए सहायक सेवाओं और प्रौद्योगिकी की अपर्याप्तता ; | |||
(झ) | महिलाओं के सामाजिक - आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और उन पर सलाह देना ; | ||
(ञ) | राज्य के अधीन महिलाओं के विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना ; | ||
(ट) | किसी जेल, सुधार गृह, महिलाओं की संस्था या अभिरक्षा के अन्य स्थान का जहां महिलाओं को बंदी के रूप में या अन्यथा रखा जाता है, निरीक्षण करना | ||
या करवाना और यदि आवश्यक हो, उपचारी/कार्यवाही के लिए सम्बंधित प्राधिकारियों से बातचीत करना ; | |||
(ठ) | बहुसंख्यक महिलाओं को प्रभावित करने वाले प्रश्नों से सम्बंधित मुकदमों के लिए धन उपलब्ध कराना ; | ||
(ड़) | महिलाओं से सम्बंधित किसी विषय पर और विशेषकर उन विभिन्न कठिनाईयों के बारे में जिनके अधीन महिलाएं कार्य करती हैं, राज्य सरकार को | ||
सामाजिक या विशिष्ट रिपोर्ट देना ; | |||
(ढ) | ऐसी परिस्थितियों की, जिनमें महिलाएं फैक्ट्रियों, प्रतिष्ठानों, निर्माण स्थलों या किन्ही अन्य स्थानों में काम करती हों, जांच करना और उनके काम की | ||
दशाओं में सुधार के लिए राज्य सरकार को संस्तुति देना ; | |||
(ण) | सम्पूर्ण राज्य में या राज्य के किसी विशिष्ट क्षेत्र में महिलाओं के विरूद्ध अपराधों से, जिसमें विवाह, दहेज, बलात्संग, व्यपहरण, अपहरण, छेड़-छाड़ और | ||
महिलाओं के अनैतिक व्यापार से सम्बंधित अपराध भी सम्मिलित हैं और प्रसव कराने या नसबंदी या प्रसव या शिशु जन्म में चिकित्सीय उपेक्षा के मामलों से,सम्बंधित सूचनाओं का संकलन करना; | |||
(त) | महिलाओं के विरूद्ध अत्याचार से सम्बंधित मामलों से निपटने के लिए सृजित राज्य पुलिस प्रकोष्ठ या सम्भागीय पुलिस प्रकोष्ठों से समन्वय करना और | ||
संपूर्ण राज्य में या राज्य के किसी विशिष्ट क्षेत्र में जनमत तैयार करना जिससे ऐसे अत्याचारों के अपराधों की तेजी से खबर देने और उनका पता लगाने | |||
और अपराधी के विरूद वातावरण तैयार करने में सहायता दी जा सके ; | |||
(थ) | अपने कृत्यों के पालन में धारा 17 के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी स्वैच्छिक संगठन की सहायता लेना | ||
(द) | कोई अन्य विषय जिसे राज्य सरकार उसे निर्दिष्ट करे। | ||
(2) | राज्य सरकार, राज्य विधान मण्डल के प्रत्येक सदन के समक्ष, आयोग की रिपोर्ट और उसके साथ उसकी सिफारिशों पर की गयी या किये जाने के लिए | ||
प्रस्तावित कार्यवाही और ऐसी किसी सिफारिश को अस्वीकार किये जाने के कारण, यदि कोई हो, का स्पष्टीकरण देते हुए ज्ञापन रखवाएगी। | |||
आयोग की शक्तियां | |||
10- | किसी वाद का विचारण करने में सिविल न्यायालय को प्राप्त सभी शक्तियां आयोग की धारा -9 की उपधारा (1) के खण्ड (क) या खण्ड (च) के उपखण्ड | ||
(एक) और (दो) में निर्दिष्ट किसी मामले का अन्वेषण करते समय और विशेषत: निम्नलिखित मामलों के सम्बंध में प्राप्त होगी, अर्थात्:- | |||
(क) | किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना और शपथ पर उसकी परीक्षा करना ; | ||
(ख) | किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना ; | ||
(ग) | शपथ-पत्रों पर साक्ष्य प्राप्त करना ; | ||
(घ) | किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अपेक्षा करना ; | ||
(ड) | साक्षियों और दस्तावेजों के परीक्षण के लिए कमीशन जारी करना ; और | ||
(च) | कोई अन्य विषय जो विहित किया जाए। | ||
अध्याय - चार | |||
वित्त, लेखा और लेखा परीक्षा | |||
राज्य सरकार द्वारा अनुदान | |||
11- | (1) | राज्य सरकार, राज्य विधान मण्डल द्वारा इस निमित्त विधि द्वारा किये गये सम्यक् विनियोग के पश्चात् आयोग को अनुदान के रूप में ऐसी धनराशि का | |
भुगतान करेगी जो राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए उपयोग किये जाने के लिए उचित समझें। | |||
(2) | आयोग इस अधिनियम के अधीन कृत्यों का पालन करने के लिए ऐसी राशि जैसी वह उचित समझे, व्यय कर सकता है, और ऐसी राशि को उपधारा (1) | ||
में निर्दिष्ट अनुदान से देय व्यय के रूप में समझा जाएगा। | |||
लेखा और लेखा परीक्षा | |||
12- | (1) | आयोग समुचित लेखा और अन्य सुसंगत अभिलेखों को रखेगा और लेखे का एक वार्षिक विवरण ऐसे प्रपत्र में, जैसा विहित किया जाए, तैयार करेगा। | |
(2) | आयोग के लेखाओं का लेखा परीक्षा निदेशक, स्थानीय निधि लेखा, उत्तर प्रदेश द्वारा वार्षिक रूप से की जाएगी। | ||
वार्षिक रिपोर्ट | |||
13- | आयोग प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए ऐसे प्रपत्र में और ऐसे समय पर जैसा विहित किया जाए, पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के दौरान अपने क्रिया कलापों का | ||
पूरा विवरण देते हुए अपनी वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा और उसकी एक प्रति सरकार को अग्रसारित करेगा। | |||
राज्य विधान मण्डल के समक्ष रखी जाने वाली वार्षिक रिपोर्ट और अन्य रिपोर्ट लेखा परीक्षा रिपोर्ट | 14- | राज्य सरकार रिपोर्ट प्राप्त होने के पश्चात् यथाशक्यशीघ्र उनमें दी गयी सिफारिशों पर की गयी कार्यवाही और ऐसी किसी सिफारिश को अस्वीकार किये जाने के कारणों, यदि कोई हो, के ज्ञापन के साथ वार्षिक रिपोर्ट और लेखा परीक्षा रिपोर्ट राज्य विधान मण्डल के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी। | |
अध्याय - पांच | |||
प्रकीर्ण | |||
आयोग के अध्यक्ष, सदस्य और कर्मचारी वर्ग लोक सेवक होंगे | |||
15- | आयोग के अध्यक्ष, सदस्य, सदस्य सचिव, अधिकारी और अन्य कर्मचारियों को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 21 के अर्थान्तर्गत लोक सेवक समझा जाएगा। | ||
राज्य सरकार आयोग से परामर्श करेगी | |||
16- | राज्य सरकार महिलाओं को प्रभावित करने वाले प्रमुख नीतिगत मामलों पर आयोग से परामर्श कर सकती है। | ||
स्वैच्छिक संगठनों का रजिस्ट्रीकरण | |||
17- | (1) | महिलाओं के कल्याण कार्य में लगा हुआ ऐसा कोई स्वैच्छिक संगठन,जो आयोग को उसके कृत्यों के पालन में सहायता करने का इच्छुक हो, | |
रजिस्ट्रीकरण के लिए आयोग को विहित रीति से आवेदन कर सकेगा। | |||
(2) | आयोग, समाज में ऐसे संगठन के महत्व, भूमिका और उपयोगिता के सम्बंध में स्वयं को संतुष्ट करने के पश्चात् ऐसे संगठन को ऐसे प्रारूप में और ऐसी | ||
रीति से जैसी विहित की जाए, रजिस्टर कर सकेगा। | |||
(3) | आयोग, इस धारा के अधीन रजिस्ट्रीकृत संगठनों की सूची किसी न्यायालय, प्राधिकारी या व्यक्ति को उपलब्ध कराएगा, यदि ऐसे न्यायालय प्राधिकारी या | ||
व्यक्ति द्वारा ऐसा अपेक्षित हो। | |||
(4) | आयोग किसी संगठन का रजिस्ट्रीकरण संगठन को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात् लिखित रूप में अभिलिखित कारणों से निरस्त | ||
कर सकेगा। | |||
(5) | उपधारा (4) के अधीन आयोग का विनिश्चय अंतिम होगा। | ||
सदभावपूर्वक की गयी कार्यवाही का संरक्षण | |||
18- | किसी व्यक्ति के विरूद्ध किसी ऐसे कार्य के लिए जो इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गये नियमों के उपबंधों के अनुसरण में सद्भावना से किया गया हो या किये जाने के लिए आशयित हो, कोई वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही नहीं की जा सकेगी। | ||
नियम बनाने की शक्ति | |||
19- | (1) | राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम बना सकती है। ऐसे नियमों में इस अधिनियम के किन्ही | |
प्रयोजनों के लिए फीस लेने की व्यवस्था की जा सकती है। | |||
(2) | विशेष रूप से और पूर्ववर्ती शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियमों में निम्नलिखित समस्त या किन्हीं विषयों की व्यवस्था की जा सकती है अर्थात्:- | ||
(क) | धारा 4 की उपधारा (5) के अधीन अध्यक्ष और सदस्यों को और धारा 5 की उपधारा (2) के अधीन सदस्य सचिव, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को | ||
देय वेतन और भत्ते और उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्ते ; | |||
(ख) | धारा 10 के खण्ड (च) के अधीन कोई विषय ; | ||
(ग) | प्रपत्र जिसमें धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन लेखे का वार्षिक विवरण तैयार किया जायेगा ; | ||
(घ) | प्रपत्र जिसमें और समय जब धारा 13 के अधीन वार्षिक रिपोर्ट तैयार की जाएगी ; | ||
(ड) | कोई अन्य विषय जिसे किये जाने की अपेक्षा की जाए या विहित किया जाए। | ||
कठिनाईयों को दूर करने की शक्ति | |||
20- | (1) | यदि इस अधिनियम के उपबंधों के कार्यान्वयन में कोई कठिनाई उपन्न हो तो राज्य सरकार, अधिसूचित आदेश द्वारा ऐसे उपबंध, जो इस अध्यादेश | |
के उपबंधों से असंगत न हो, कर सकती है, जो कठिनाईयों को दूर करने के लिए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत हो। | |||
(2) | उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश इस अधिनियम के प्रारम्भ के दिनांक से दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा। | ||
(3) | उपधारा (1) के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, उसके किये जाने के पश्चात् यथाशक्यशीघ्र राज्य विधान मण्डल के दोनो सदनों के समक्ष प्रस्तुत किया | ||
जाएगा और उत्तर प्रदेश साधारण खण्ड अधिनियम 1904 की धारा 23-क की उपधारा (1) के उपबंध उसी प्रकार प्रवृत्त होंगे जैसे वे किसी उत्तर | |||
प्रदेश अधिनियम के अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाए गये नियमों के सम्बंध में प्रवृत्त होते है। |
राज्य सरकार महिलाओं के सांविधिक अधिकारों के सरंक्षण और उनके समुचित विकास एवं कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है। उक्त उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग 2001 (उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या 34 सन् 2001) को एक राज्य महिला आयोग की स्थापना की व्यवस्था करने के लिए अधिनियमित किया गया था। चूंकि उक्त आयोग से उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पा रही थी, जिसके फलस्वरूप उसकी उपयोगिता समाप्त हो गयी थी। अतएव उक्त अधिनियम को उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग (निरसन) अध्यादेश 2004 (उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या 2 सन् 2004) द्वारा निरसित किया गया था। |
उक्त उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए यह विनिश्चय किया गया है कि एक प्रभावी राज्य महिला आयोग की स्थापना की व्यवस्था करने के लिए एक अधिनियम लाया जाए, जिससे उक्त प्रयोजन की पूर्ति हो सके। |
तदनुसार उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग विधेयक 2004 पुर:स्थापित किया जाता है। |
आज्ञा से, आर0बी0 राव, प्रमुख सचिव। |
संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ | 1- | (1) | यह अधिनियम उत्तर प्रदेश राज्य महिला (संसोधन) अधिनियम, 2007 कहा जायेगा। |
(2) | यह दिनांक 15 जून, 2007 से प्रवृत्त हुआ समझा जायेगा। | ||
उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या 7 सन् 2004 की धारा 3 का संसोधन | 2- | उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग अधिनियम, 2004 जिसे आगे मूल अधिनियम कहा गया है, की धारा 3 में- | |
(क) | खण्ड | (क) के पश्चात् निम्नलिखित खण्ड बढ़ा दिया जायेगा, अर्थात्- | |
(कक) राज्य सरकार द्वारा नामनिर्दिस्ट दो उपाध्यक्ष, जो महिलाएं होंगी और जिन्होनें महिलाओं के कल्याण के लिये कार्य किये हों और जिनके पास भारत की विधि द्वारा स्थापित किसी विश्वविद्यालय की कोई उपाधि या उसके समकक्ष मान्यता प्राप्त कोई अर्हता हो, | |||
(ख) | खण्ड | (ख) के स्थान पर निम्नलिखित खण्ड रख दिया जायेगा, अर्थात्:- | |
(ख) राज्य सरकार द्वारा नामनिर्दिस्ट सत्रह सदस्य, जिन्होनें महिलाओं के उत्थान और कल्याण के लिये कार्य किया हो, | |||
धारा 4 का संसोधन | 3- | मूल अधिनियम की धारा-4 में:- | |
(क) | उपधारा | (1), (2) और (3) के स्थान पर निम्नलिखित उपधारा रख दी जायेगी अर्थात्- | |
(1) | अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या प्रत्येक सदस्य पद ग्रहण करने के दिनांक से एक वर्ष की अवधि तक अथवा राज्य सरकार के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करेंगे। परन्तु यह कि राज्य सरकार ऐसे पदाधिकारियों की पदावधि को बिना कारण बताये किसी भी समय प्रतिसंहृत कर सकती है। | ||
(2) | अध्यक्ष 32 वर्ष की आयु से कम होने पर 60 वर्ष की आयु के पश्चात् पद धारण नहीं करेगा, कोई उपाध्यक्ष 28 वर्ष की आयु से कम होने पर और 60वर्ष की आयु के पश्चात् पद धारण नहीं करेगा और कोई अन्य सदस्य 22 वर्ष की आयु प्राप्त करने के पूर्व और 60 वर्ष की आयु पूरी करने के पश्चात् पद धारण नहीं करेगा। | ||
(3) | अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष को क्रमशः राज्य के राज्यमंत्री एवं उपमंत्री का दर्जा दिया जायेगा। | ||
(ख) | उपधारा | (5) को निकाल दिया जायेगा। | |
(ग) | उपधारा | (7) में शब्द ""अध्यक्ष"" के स्थान पर शब्द "अध्यक्ष, उपाध्यक्ष" रख दिये जायेंगें। | |
धारा 6 का संसोधन | 4- | मूल अधिनियम की धारा, 6 में शब्द ""अध्यक्ष"" के स्थान पर शब्द ""अध्यक्ष, उपाध्यक्ष"" रख दिये जायेंगे । | |
उत्तर प्रदेश अध्यादेश संख्या 14 सन् 2007 |
निरसन और अपवाद | 5- | (1) | उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग (संशोधन) अध्यादेश, 2007 एतदद्वारा निरसित किया जाता है। |
(2) | ऐसे निरसन के होते हुए भी, उपधारा (1) में निर्दिस्ट अध्यादेश द्वारा यथासंशोधित मूल अधिनियम के उपबन्धों के अधीन कृत कोई कार्य या कार्यवाही इस अधिनियम द्वारा | ||
यथासंशोधित मूल अधिनियम के तत्समान उपबन्धों के अधीन कृत कार्य या कार्यवाही समझी जायेगी मानो इस अधिनियम के उपबन्ध सभी सारवान पर प्रवृत्त थे। |
1- | (1) | यह अधिनियम उत्तर प्रदेश राज्य महिला (संसोधन) अधिनियम, 2013 कहा जायेगा। | |
(2) | यह दिनांक 26 अप्रैल 2013 से प्रवृत्त होगा । | ||
उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या 7 सन् 2004 की धारा 3 का संसोधन | 2- | उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग अधिनियम, 2004 जिसे आगे मूल अधिनियम कहा गया है, की धारा 3 में,उपधारा (2) में ,- | |
(क) खण्ड (क) के स्थान पर निम्नलिखित खण्ड रख दिया जायेगा , अर्थात :- | |||
" (क) राज्य सरकार द्वारा नाम -निर्दिष्ट एक अध्यक्ष तथा दो उपाध्यक्ष , जो महिलाये होंगी और जिन्होंने महिलाओ के कल्याण के लिए कार्य किया हो;"; | |||
(ख) खण्ड (कक) निकाल दिया जायेगा ; | |||
(ग ) खण्ड (ख) के स्थान पर निम्नलिखित खण्ड रख दिया जायेगा , अर्थात :- | |||
(ख ) राज्य सरकार द्वारा नाम -निर्दिष्ट 25 सदस्य ,जो महिलाये होंगी और जिन्होंने महिलाओ के उत्थान एवं कल्याण के लिया कार्य किया हो : परन्तु यह कि कम से कम एक सदस्य निम्नलिखित प्रत्येक से सम्बंधित महिलाओ में से होगा - (एक ) अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जन जातियों ; (दो ) नागरिको के अन्य पिछड़े वर्ग (तीन ) अल्पसंख्यकों। " |
|||
धारा 4 का संसोधन | 3- |
मूल अधिनियम की धारा 4 में ,उपधारा (2) के स्थान पर निम्नलिखित उपधारा रख दी जाएगी , अर्थात :- (2 ) अध्यक्ष कोई उपाध्यक्ष या कोई सदस्य 25 वर्ष की आयु से काम होने पर पद धारण नहीं करेगा। " |
|
धारा 15 का संसोधन | 4- | मूल अधिनियम की धारा 15 में शब्द "अध्यक्ष " के स्थान पर "अध्यक्ष उपाध्यक्ष " रख दिये जायेगे। | |
निरसन और अपवाद | 5- | (1) | उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग (संशोधन) अध्यादेश ,2013 एतदद्वारा निरसित किया जाता हैं। |
(2) | ऐसे निरसन के होते हुये भी , उपधारा (1) में निर्दिष्ट अध्यादेश द्वारा यथासंशोधित मूल अधिनियम के उपबंधों के अधीन कृत कोई कार्य या कार्यवाही इस | ||
अधिनियम द्वारा यथासंशोधित मूल अधिनियम के तत्समान उपबंधों के अधीन कृत कार्य या कार्यवाही समझी जायेगी मानो इस अधिनियम के उपबन्ध सभी सारवान समय पर प्रवृत्त थे। | |||
उत्तर प्रदेश अध्यादेश संख्या 5 सन् 2013 |
    
     महिलाओ के सांविधिक अधिकारों के संरक्षण और उनके विकास एवं कल्याण के उददेश्य से उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग अधिनियम , 2004 (उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या 7 सन् 2004 )
अधिनियमित किया गया हैं। उक्त अधिनियम की धारा 3 में उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग के गठन की व्यवस्था हैं। यह प्रावधान किया था कि उक्त आयोग का गठन एक महिला अध्यक्ष , दो उपाध्यक्षों तथा 17 सदस्यों से किया जायेगा। उक्त आयोग के कृत्यों ,उत्तरदायित्व और उपयोगिता को और अधिक युक्तियुक्त बनाने के उददेश्य से यह विनिष्चय किया गया है कि उक्त अधिनियम को संशोधित करके उक्त आयोग का गठन एक महिला अध्यक्ष , दो उपाध्यक्षों तथा 25 सदस्यों से करने और अध्यक्ष , उपाध्यक्षों तथा सदस्यों की न्यूनतम आयु को 32 वर्ष घटाकर 25 वर्ष करने की भी व्यवस्था की जाये।
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